कांग्रेस के मनीष तिवारी क्यों हो जाते हैं बेलगाम?
मनीष तिवारी ने बुधवार को कहा, "नाजियों ने भी ऑटोभान (जर्मन राजमार्ग) बनाया था लेकिन नाजियों का शासन इनके लिए नहीं जाना जाता है। वह (आस्चविच) यातना शिविरों के लिए जाना जाता है। यह ट्रेबलिंका (संहार शिविर) के लिए जाना जाता है। यहां यहूदियों को बलपूर्वक रखा जाता था। विविधपूर्ण गुजरात के विपरीत राज्य में भाजपा का शासन अक्षमता और हत्याकांड के दोष को परिभाषित करता है। मैं कोई तुलना नहीं कर रहा हूं लेकिन हां, कुछ सबक हैं जो हमें इतिहास से मिलती है."
तिवारी ने यह बात तब कही जब हाई कोर्ट ने गोधरा मामले में नानावटी आयोग के सामने नरेंद्र मोदी की पेशी से इनकार कर दिया। यह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक पॉजिटिव ऐक्शन था, जो कांग्रेस से बर्दाश्त नहीं हुई। यूपी चुनाव में अन्य पार्टियों को मजबूत होता देख कांग्रेस के सामने मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।
यह सब किसी कीखिसियाहट से कम नहीं। और यही खिसियाहट मनीष तिवारी की जुबां पर आ ही गई। यह सभी जानते हैं कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश के मुस्लिम वोटों के लिए जी तोड़ कोशिशें कर रही है। ऐसे समय में जब चुनाव सिर पर है, कोई ऐसा फैसला जो भाजपा के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाये यह उससे बर्दाश्त नहीं होगा। खैर अगर कांग्रेस अपनी भड़ास कुछ और कहकन निकालते तो ठीक था, लेकिन मोदी की तुलना नाजियों से करने वाली बाद सेंसर कर देनी चाहिये। इस तरह की बातें राज्य में सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दे सकती हैं।
कोर्ट, कानून और लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव कराने की गारंटी हमारा संविधान देता है। और इस पर सभी को विश्वास भी है। दूसरी बात यह कि अब देश के लोग सांप्रदायिक सोच से घृणा भी करने लगे हैं। द हिन्दू अखबार में प्रवीन स्वामी ने अपने स्तंभ में लिखा है कि हमारा राष्ट्र अब आगे देख रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में भी सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में गिरावट दर्ज हुई है। जबकि पहले हत्याओं के बड़े कारण यही होते थे। देश इस समय आर्थिक विकास की ओर बढ़ रहा है।
ऐसे माहौल में कांग्रेस के ऐसे बयान गैर जिम्मेदाराना दृष्टिकोण को दर्शाता है। अब कांग्रेस पार्टी जिसने अन्ना को भगोड़ा कहने पर मनीष तिवारी की चावी टाइट की थी, इस बार शायद ही उनके खिलाफ कोई ऐक्शन करें।