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मेरी लाइफ का रोमांचक वैलेंटाइन्‍स डे

By Ajay Mohan
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अजय मोहन

वैलेंटाइंस डे आया तो मन हुआ कुछ लिखने का, लेकिन क्‍या लिखूं समझ नहीं आया, क्‍योंकि शादी के बाद खुद का वैलेंटाइन कैसा होगा आप समझ सकते हैं। सोचते-सोचते मन 7 साल पीछे चला गया, जब वैलेन्‍टाइन डे के दिन शिवसेना और बजरंग दल के उत्‍पाती बंदर देश भर में कोहराम मचाया करते थे। खैर ये लोग विरोध तो अब भी करते हैं, लेकिन उस स्‍तर पर नहीं जैसा वो 2005-06 में किया करते थे।

आज मेरी कहानीं यहीं से शुरू होगी। लेकिन खास बात यह है कि यह कहानी मेरी नहीं, मेरे दोस्‍त की है। मेरे दोस्‍त अभिन्‍न प्रताप सिंह की, जो मेरी क्‍लासमेट को चाहता था। 14 फरवरी का बुखार लखनऊ में उस समय चरम पर हुआ करता था। दो तीन दिन पहले से लोग अपनी तैयारियां शुरू कर देते थे। लेकिन दुर्भाग्‍यवश मेरे पास तैयारी का कोई कारण नहीं था, हां मेरे दोस्‍त काफी उत्‍साहित थे, क्‍योंकि वो वैलेंटाइन्‍स डे के दिन प्रोपोज़ करने जा रहे थे।

13 फरवरी की शाम अभिन्‍न से मेरी मुलाकात हुई और उसने मुझे अपनी पूरी कहानी बतायी और मुझसे बोला क्‍या यार तुम क्‍यों वैलेंटाइन्‍स डे नहीं मनाते.... मेरे पास उसके सवालों का जवाब नहीं था। दूसरे दिन सुबह होते ही मैंने उसे फोन कर बेस्‍ट ऑफ लक बोला और अपने काम पर निकल गया। थोड़ी ही देर बाद कॉल आयी जिसमें अभिन्‍न ने कहा, "यार मैं बहुत परेशान हूं, मेरी मदद करो, यहां आरएसएस और बजरंग दल वाले उत्‍पात मचा रहे हैं।"

इतनी बात सुनकर मैं समझ गया कि अभिन्‍न किसी मुसीबत में है। मैंने तुरंत पूछा, तुम अकेले हो या वो तुम्‍हारे साथ है, जवाब मिला मैं तो सुरक्षित हूं, लेकिन जहां मिलने का प्‍लान बनाया था, वहां ये लोग घूम रहे हैं, मुझे उससे मना करना है, कि वो वहां मत आये। बाइक पर भी लड़के-लड़कियों को देख ये लोग रोक-रोक कर अभद्रता कर रहे हैं, इसलिए मैं उसे लेने भी नहीं जा सकता। क्‍या करें बताओ।

उस समय अगर ऐयरटेल का विज्ञापन "हर एक फ्रेंड जरूरी होता है, अगर होता तो शायद मैं वही गुनगुना रहा होता।" मैंनें अपनी कार निकाली और उससे पूछा बताओ कहां आना है। उसने बताया गोमतीनगर के पत्रकारपुरम चौराहे पर। एक घंटे के अंदर मैं वहां पहुंच गया। तब मेरे लिये चुनौती यह थी कि मैं अपने दोस्‍त को उसकी मंजिल तक कैसे पहुंचाऊं। दोपहर तक हम इधर-उधर कार से घूमते रहे।

फिर अंतत: मैंने अपनी कार यूनिवर्सिटी की तरफ मोड़ दी। चूंकि वो मेरी क्‍लासमेट थी, और मेरी एक अच्‍छी दोस्‍त भी। वो मेरी एक कॉल में आ गई। खास बात यह है कि वो मेरे फ्रेंड के साथ पीछे नहीं बैठी। वो आगे मेरे साथ बैठी और बोली बताओ कैसा रहा तुम्‍हारा वैलेंटाइन। मेरा भी टेंशन बढ़ने लगा था। क्‍योंकि अगर बजरंग दल के कार्यकर्ता देख लेते तो मेरी कार को निशाना बना डालते।

खैर शायद मेरे दिमाग में जो चल रहा था, अभिन्‍न उससे अच्‍छी तरह वाकिफ था, उसने तुरंत अपनी जेब से एक गुलाब का फूल निकाला और उसे दे दिया। साथ में एक कार्ड और वही प्‍यार के तीन शब्‍द। खैर आगे जो हुआ, आप उसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं, कि महज आधा किलोमीटर दूर पहुंच ते ही मेरी क्‍लासमेट यानी मेरे दोस्‍त की सो कॉल्‍ड वैलेंटाइन कार से उतर गई और अपने घर चली गई। उसने अभिन्‍न का कार्ड ऐक्‍सेप्‍ट कर लिया, फूल भी, लेकिन दोस्‍ती नहीं। जहां तक मुझे पता है कि उस दिन के बाद से उनकी मुलाकात कभी नहीं हुई।

आज मैं सोचता हूं, कि हम लोग भी कितने इम्‍मेच्‍योर थे। मेरा दोस्‍त जिसे अपना जीवन साथी बनाना चाहता था, उसे एक नजर में चाहने लगा और हजारों सपने बुन बैठा। तब उसके बेहतर करियर का भी कोई अता-पता नहीं था। अब मैं सोचता हूं कि अगर अभिन्‍न अपनी नौकरी में पूरी तरह सेटेल होने के बाद अपनी वैलेंटाइन को खोजने निकलता तो हमारी यात्रा काफी लंबी होती।

यदि आप अपने जीवन के वैलेंटाइन डे से जुड़ी कोई स्‍टोरी हमारे साथ शेयर करना चाहते हैं तो लिख भेजिये- [email protected] को। हम आपके नाम के साथ आपकी स्‍टोरी प्रकाशित करेंगे।

वैलैंटाइन्‍स डे पर अपने-अपनो को भेजें फूलों का गुलदस्‍ता और केक वनइंडिया के माध्‍यम से।

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English summary
Here is the real story of Valentine's Day of Lucknow youth. Read first person by Ajay Mohan.
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