कश्मीरी पंडित सड़क पर, तो कैसे लें अवार्ड
कश्मीरी पंडित विस्थापितों के संगठन पनुन कश्मीर के प्रधान एवं जाने माने हिंदी लेखक और कवि डा. अग्निशेखर ने जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी का सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का अवार्ड ठुकरा दिया है। पुरस्कार ठुकराने के पीछे अग्निशेखर का तर्क है कि मौजूदा रियासती सरकार कश्मीरी पंडित विस्थापितों का सम्मान नहीं कर रही है। 22 सालों से विस्थापन की जिंदगी जी रहे कश्मीरी पंडित विस्थापितों का स्थायी पुनर्वास तक नहीं हो पाया है।
इस स्थिति में वे मौजूदा सरकार की किसी एजेंसी या मुख्यमंत्री से अवार्ड प्राप्त करना नहीं चाहते। अग्निशेखर ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि पिछले 22 सालों से कश्मीरी पंडित घाटी में अपने घरों को छोड़कर देश और विदेशों में विस्थापितों की जिंदगी जी रहे हैं। वह कश्मीरी पंडित विस्थापित बिरादरी का प्रतिनिधित्व करते हैं। सरकार की ओर से कश्मीरी पंडित विस्थापितों की समस्याओं का हल किये बगैर वह किसी भी तरह का अवार्ड प्राप्त करना नहीं चाहते।
उन्होंने कहा कि रियासत की संस्कृति और कला अकादमी के प्रधान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला है और उन्होंने पिछले दिनों राष्ट्रीय मीडिया के समक्ष विस्थापित बिरादरी के खिलाफ काफी बातें कही है। ऐसे में बिरादरी के प्रतिनिधि होने के नाते और एक लेखक के नाते भी वह मौजूदा रियासती सरकार का पुरस्कार प्राप्त करना नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि घाटी में जेहादी आतंकवाद और पूर्ववर्ती सरकारों के अलावा मौजूदा सरकार भी बढ़ावा दे रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार कश्मीर की संस्कृति और विरासत से खिलवाड़ कर रही है और कई शहरों का नाम बदला जा रहा है। विस्थापितों के धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों पर अतिक्रमण को खत्म करने के लिए उचित कदम नहीं उठाये जा रहे। अग्निशेखर के अनुसार उनकी कविता संग्रह जवाहर टनल को सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के लिए चुना गया है जिसके तहत 51 हजार रुपये का नकद पुरस्कार, स्मृति चिन्ह और शाल भेंट किया जाता है।