राजीव गांधी बनना चाहते थे जगनमोहन!
आज से 14 महीने पहले जब वाईएसआर रेड्डी इस दुनिया में नहीं रहे तभी से जगन मोहन और उनके समर्थक जगन को सीएम की कुर्सी पर देखना चाहते थे। लेकिन आलाकमान ने जगन को नहीं बल्कि रोशैया को गद्दी सौंपी। तभी से जगन ने अपने बागी तेवर दिखाना शुरू कर दिया था। यहां पर ये गौर फरमाया जाये कि आखिर सोनिया ने जगन को गद्दी पर क्यों नहीं बैठाया? इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि जगन के पास सिर्फ ये छोड़कर कि वो वाईएसआर के बेटे है और कोई पहचान नहीं है। वो कड़प्पा से सांसद जरूर हैं लेकिन वो सीट अरसे से उनके परिवार की ही रही है। इस के अलावा उनके पास और कोई पहचान और ताकत नहीं है।
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तो क्या सीएम की गद्दी राज्य और प्रजा से ज्यादा बड़ी हो गई है जगन के लिए। अपने पिता की मृत्यु के बाद क्या जगन को लगने लगा था कि वो पुराना इतिहास दोहराते हुए सीएम बन जायेगें। जगन को लगा कि वो देश के दूसरे राजीवगांधी हैं। जिन्हे मां इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बना दिया गया था। लेकिन राजीव से बराबरी करने की तुलना में जगन ये भूल गये कि राजीव गांधी सन् 1980 में एमपी बनें थे और 1982 में कार्यकाल मोरारजी देसाई का था और 1984 में इंदिरा जी के मरने के बाद सत्ता मिली थी। यानी की चार साल का वक्त राजीव को भी लगा था, जबकि वो उस परिवार के सदस्य थे जिन्हें देश के सच्चे देशभक्त की संज्ञा दी जाती है।
यही बात राहुल गांधी के साथ भी सामने आती है। सोनिया अगर चाहती तो राजीव गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में उनके सुपुत्र को सामने लाने का प्रयास कर सकती थी लेकिन देश या राज्य की सत्ता चलाने के लिए किसी नेता का बेटा या बेटी होना ही जरूरी नहीं हैं। इसके लिए इंसान को अनुभवों से भी गुजरना चाहिए। सो सोनिया ने राहुल के मामले में वो ही किया।
वैसे कांग्रेस परिवार अपने आगे किसी को चलने नहीं देना चाहती है ये भी बहुत बड़ी सच्चाई है, इसका अंदाजा शायद कांग्रेसआलाकमान को 14 महीने पहले ही हो गया था, जगन के तीखे तेवरों से उसे लगने लगा था कि शायद जगन पार्टी के लिए खतरा हो सकते हैं, इसलिए उसने दोहरी चाल चलते हुए जगन को मौका न देते हुए हर वो काम किया जिससे जगन को परेशानी हो लेकिन जगन के खिलाफ उसने कुछ नहीं किया।
चूंकि जगन युवा नेता है इसलिए उनका जोश उनके होश पर हावी हो गया और वो कर बैठे जिसका अनुमान खुद कांग्रेस को था, कांग्रेस ने खुलकर कुछ नहीं किया उसे पता था कि दक्षिण में आंध्रा ही वो एकमात्र राज्य है जहां उसकी सत्ता है। और जगन को तकलीफ पहुंचाने का मतलब है कि वो अपनी किरकरी कराये, इसलिए उसने पूरा समय लिया जगन के पर कतरने में। और अंत में वो कामयाब भी हुई लेकिन जगन के जोश ने उन्हें ये भूला दिया कि कांग्रेस में केवल एक ही राजीव गांधी हो सकते हैं दूसरा कोई नहीं। इसलिए जगन का राजीव बनने का सपना चूर-चूर हो गया।
क्या आप भी जगन के इस सपने को सही मानते है या नहीं अपने विचार से हमें जरूर अवगत कराये, अपनी प्रतिक्रिया से नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें।