कनाडा और अमेरिका ने किया जियाओबो की रिहाई का आग्रह (लीड-1)
पिछले साल नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले ओबामा ने जियाओबो को शांति पुरस्कार दिए जाने का स्वागत किया है।
ओबामा ने कहा, "पिछले साल मैने इस बात पर गौर किया था कि पुरस्कार प्राप्त करने वाले बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने मुझसे अधिक बलिदान किए थे। उस सूची में जियाओबो का नाम शुमार हो गया है जिन्होंने अपना मत व्यक्त करने की आजादी के लिए बलिदान किया।"
उन्होंने कहा, "हम चीन सरकार से अनुरोध करते हैं कि लिउ को जल्द से जल्द रिहा किया जाए।"
उन्होंने कहा कि चीन ने आर्थिक सुधारों के क्षेत्र में काफी तरक्की की है और लाखों लोगों को गरीबी के दलदल से बाहर निकालते हुए उनका जीवन बेहतर बनाया है। लेकिन यह पुरस्कार इस बात की याद दिलाता है कि राजनीतिक सुधारों ने रफ्तार नहीं पकड़ी है।
जियाओबो को चीन में मानवाधिकार मूल्यों के लिए लंबे समय तक अहिंसात्मक संघर्ष के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है। 54 वर्षीय जियाओबो को पिछले साल 11 साल की सजा सुनाई गई थी।
कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने भी चीन से जियाओबो की रिहाई का आग्रह करते हुए कहा, " मैं उम्मीद करता हूं कि अब जियाओबो नोबेल शांति पुरस्कार विजेता घोषित हो चुके हैं। चीनी सरकार को उन्हें जेल से रिहा करने के मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए।"
हार्पर ने कहा, "लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगा की उन्हें शांति पुरस्कार मिलने से हम काफी खुश हैं और उन्हें बधाई देना चाहते हैं।"
दूसरी ओर चीन का मीडिया जियाओबो को पुरस्कार देने की आलोचना कर रहा है। 'ग्लोबल टाइम्स' नाम के समाचार पत्र ने लिखा है, "नोबेल समिति ने एक बार फिर से उस देश के प्रति अपने पूर्वाग्रह को दर्शा दिया है जिसने पिछले तीन दशकों में आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय तरक्की की है।"
"नोबेल पुरस्कार को चीन में एक प्रतिष्ठित पुरस्कार के तौर पर जाना जाता रहा है लेकिन कई चीनी नागरिक यह महसूस करते हैं कि शांति पुरस्कार पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित है।"
पत्र के मुताबिक चीनी नागरिकों के पास यह सवाल पूछने का कारण मौजूद है कि क्या नोबेल पुरस्कार चीन के विरोधी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला राजनीतिक उपकरण मात्र रह गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।