वाइकीलीक्स के खुलासे पर लीपापोती में जुटा पाकिस्तान
अवैस सलीम
इस्लामाबाद, 28 जुलाई (आईएएनएस)। अफगानिस्तान में भारतीयों के खिलाफ आतंकी हमलों में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के शामिल होने संबंधी जानकारियां वाइकीलीक्स नामक वेबसाइट पर सावजनिक होने से पाकिस्तान के सरकारी हलकों में मिश्रित प्रतिक्रिया हुई है।
पाकिस्तान के खुफिया और सरकारी हलकों में कुछ लोगों का मानना है कि यह पाकिस्तान पर दबाव बनाने और इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस(आईएसआई) सहित उसकी अन्य खुफिया एजेंसियों को एक और विवाद में उलझाने का प्रयास है।
एक वर्ग का मानना है कि कि यह उन घटनाओं का खुलासा है जिनकी परिणति अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में हुई।
लीक हुए ज्यादातर दस्तावेजों में ज्यादा जोर इस बात पर है कि अफगानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा बलों पर होने वाले हमलों के लिए आईएसआई ने तालिबान तथा अन्य आतंकवादी गुटों से साठ-गांठ की थी । इन दस्तावेजों में नागरिकों के हताहत होने पर चिंता जाहिर की गई है।
अमेरिकी दैनिक 'न्यूयार्क टाइम्स' के अनुसार लीक हुए दस्तावेजों में कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना ने दुश्मन और दोस्त दोनों ही भूमिकाएं निभाई हैं क्योंकि उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हमलों की साजिश रचने में अलकायदा का साथ दिया है। इस दोहरे खेल को लेकर अमेरिकी अधिकारी अर्से से पाकिस्तान पर शक करते रहे हैं।
समाचार पत्र के अनुसार अमेरिकी अधिकारी पहले ही एक बड़े हमले में आईएसआई की भूमिका के सबूतों का खुलासा कर चुके हैं। जुलाई 2008 में सीआईए के उपनिदेशक स्टीफन आर.कैप्स ने काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमले की साजिश में आईएसआई द्वारा मदद किए जाने संबंधी इन सबूतों के बारे में पाकिस्तानी अधिकारियों से बातचीत की थी।
व्हाइट हाउस के प्रवक्ता के अनुसार इन दस्तावेजों के लीक होने के बाद हुए हंगामे के बाद से अमेरिका और पाकिस्तान इस नुकसान की भरपाई के भरसक प्रयास कर रहे हैं।
अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा से शंकाओं से के घेरे में रहे हैं। पाकिस्तानी अवाम की यह राय रही है कि अमेरिका उसे कमतर आंकता है। ऐसे में अमेरिका द्वारा इन सैन्य दस्तावेजों के इस प्रकार सार्वजनिन होने की जांच का आदेश दिए जान भर से आलोचकों का मुंह बंद न हो सकेगा।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल बासित के अनुसार आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान ने किसी भी अन्य मुल्क से ज्यादा कुर्बानी दी है और अमेरिका इन कुर्बानियों से सिर्फ अवगत ही नहीं है, बल्कि वह इनकी सराहना भी करता है। अपनी दलील के समर्थन में बासित ने दोनों देशों की सरकारों के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों का हवाला दिया।
दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक हसन जमील उनकी बात से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने इस लीक पर सचेत रहने को कहा है और उनकी दलील है कि इस बारे में पाकिस्तान से ज्यादा अमेरिका को चिंतित होने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, "अगर पल भर को हम यह मान लें कि ये दस्तावेज ओबामा प्रशासन की मिलीभगत के बगैर लीक हुए तो ये उन युद्ध संबंधी रणनीतियों की निराशाजनक तस्वीर पेश करती हैं जिनकी परिणति अफगानिस्तान अभियान में हुई।"
पूर्व आंतरिक मंत्री आफताब अहमद खान शेरपाओ ने अमेरिका की इस मांग पर निराशा जाहिर की है कि पाकिस्तान को आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाहों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में सहयोगी बनने के बाद से ही पाकिस्तान ने अमेरिका से कोई पर्दा न रखने का फैसला किया था।
उन्होंने इस बात पर खेद जाहिर किया कि पाकिस्तान के तमाम प्रयासों के बावजूद विश्वास की कमी बरकरार है।
पखवाड़े भर पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो यहां तक कह डाला था "ऐसे आरोप अब असामान्य नहीं हैं और इनसे निपटने का सही तरीका यही है कि इन्हें मुस्कुरा नजरंदाज कर दिया जाए।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
**