क्या ठाकुरों में सिर्फ लड़के ही पैदा हों!
असल में सीरियल में हर व्यक्ति यही चाहत दिखा रहा है कि घर में लल्ला ही आए, लल्ली नहीं। पोता वो भी जो ठाकुर के खानदान का नाम रौशन करे। सीरियल में तब तो हद ही खत्म हो गई जब बहू को राई की पोटली दी गई, और कहा गया कि इसे तकिए के नीचे रखकर सो जाओ। अगर दाने बढ़ गए, तो लड़का, घट गए तो लड़की। कुछ भी कहें, यह एक ढकोंसला है, यह हम सब जानते हैं, लेकिन ऐसी चीजें दिखाना टीआरपी बटोरने का महज तरीका ही है। सीरियल में हर बार बहू पर दबाव बनाया जाता है कि लड़का ही होना चाहिए।
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यह मुद्दा देखने में भले ही हलका हो, लेकिन महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अध्ययन कर रहे विशेषज्ञ इसे हलका नहीं समझते। लखनऊ विश्वविद्यालय के विमेंस स्टडीज संस्थान के लेक्चरर डा. अमित कुमार पांडेय ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "टीवी सीरियलों में इस प्रकार की चीजें दिखाना समाज को वापस उसी नरक में ढकेलने जैसा है, जहां से हम निकल कर आए हैं। वर्षों पहले सिर्फ लड़के की चाहत रखने वाले जो ठाकुर नए जमाने के साथ ढल चुके हैं, उनके अंदर वापस पुरानी मानसिकता भरने जैसा कदम है।"
डा. पांडेय के मुताबिक के भेद-भाव दिखाकर टीवी सीरियल उन सभी अभियानों को ठंडा कर रहे हैं, जो कन्या भ्रूण हत्या, महिला उत्पीड़न, आदि के खिलाफ चलाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसे धारावाहिकों को दिखाने से पहले उनकी एक-एक कड़ी सेंसरशिप से गुजरे तभी इसका हल मिल सकता है।एक बात यह भी कि क्षत्रिय समाज को भी ऐसे प्रचार के खिलाफ आगे आना चाहिए, क्योंकि ठाकुर परिवार के रहन-सहन के नाम पर कुछ भी दिखाना सामाजिक दृष्टि से ठीक नहीं है।