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खुशबू के खिलाफ सभी मामले खारिज
निजी राय
प्रधान न्यायधीश न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की खंडपीठ ने खुशबू के खिलाफ दर्ज मामलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अभिनेत्री का बयान उनकी निजी राय थी और भारत का संविधान अभिव्यक्ति की आजादी देता है। खुशबू ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती थी। वर्ष 2008 में उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ दर्ज मामलों से जुड़ी उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
अपराध
नहीं
लिव
इन
रिलेशनशिप
सर्वोच्च
न्यायालय
ने
अपने
फैसले
में
कहा,
"जब
दो
जवान
लोग
साथ
रहना
चाहते
हैं
तो
इसमें
अपराध
क्या
है?
क्या
इसमें
अपराध
का
कोई
मामला
बनता
है?
साथ
रहना
कोई
अपराध
नहीं
है।
यह
अपराध
नहीं
हो
सकता।"
उल्लेखनीय
है
खुशबू
ने
कहा
था
कि
विवाह
पूर्व
यौन
संबंध
और
'लिव-इन
रिलेशनशिप'
में
कुछ
भी
गलत
नहीं
है।
उनके
इस
बयान
पर
काफी
विवाद
खड़ा
हुआ
था।
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