मुर्गे के पंख से बनाया ईंधन
मिश्रा वर्ष 1998 से विश्वविद्यालय संकाय के सदस्य हैं। वह अब तक पेटेंट संबंधी 10 शोध पत्र प्रकाशित कर चुके हैं। वह अभी 12 और शोध पत्र प्रकाशित करेंगे। उन्होंने इन कार्यो के लिए 2.5 करोड़ डॉलर से अधिक की अनुदान राशि प्राप्त की है। मिश्रा सौर हाइड्रोजन, हाइड्रोजन भंडारण और सेंसर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर चुके हैं। उन्होंने पेय जल से आर्सेनिक अवयव हटाकर प्रसिद्धि हासिल की थी। अमेरिका की कई कंपनियां उनके द्वारा निर्मित आर्सेनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रही है।
मिश्रा फिलहाल मुर्गे के पंखों और कॉफी के दानों के जरिए बॉयोडीजल बनाकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्यो के लिए उन्हें राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन और रक्षा मंत्रालय की समिति में शामिल किया गया है। मिश्रा नेवादा विश्वविद्यालय में रसायन और धातुकर्म अभियांत्रिकी विभाग में वर्ष 1993 से प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। इसके अलावा वह छह वर्षो तक धातुकर्म अभियांत्रिकी विभाग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
मिश्रा वर्तमान में विश्वविद्यालय संकाय के सदस्य होने के अलावा 'सेंटर फॉर मिनरल बॉयोप्रोसेसिंग एंड रिमेडिएशन' विभाग और पर्यावरण विज्ञान विभाग के निदेशक का भी कार्य देख रहे हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।