आज के दिन को बुधवार कहूं...
जमीनी हकीकत यह है कि हर छोटा-बड़ा राजनेता धन कमाने में लगा हुआ है। शायद वे यह भूल जाते हैं कि जिस कमाए हुए धन को वे खर्च करना चाहते वह देश ही असुरक्षित होता जा रहा है। उनसे पूछना चाहिए कि क्या वे जेड-क्लास सिक्योरिटी से घिरे रहकर इस देश में अपना जीवन बिताना चाहेंगे और अपने कमाए हुए धन से मौज करने निकलेंगे? यही वक्त है जब हमारी न्यायपालिका को दखल देना चाहिए और हमारी सरकार से आतंकवाद निरोधक कानूनों के पालन पर सवाल पूछने चाहिए। पोटा लागू किया जाए या नहीं, हमें एक ऐसा कानून चाहिए जो निर्दोष लोगों को मरने से बचा सके।
किसी आतंकी ने टीवी चैनल से कहा, "हम इस देश को प्यार करते हैं मगर जब हमारी माएं और बहनें मारी जा रही थीं जब सब लोग कहां थे?" कहने की जरूरत नहीं कि इस तरह के कदम इस देश में मुसलमानों के हित की बजाए उनको और नुकसान पहुंचाते हैं। यही वह वक्त है जब हमारे धार्मिक नेताओं को एकजुट होकर नौजवानों को दिशा देने का काम करना चाहिए। सरकार को अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा पर खर्च करना चाहिए। इन समुदाय के लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि वे वोट बैंक अथवा चरमपंथी राजनीति से प्रभावित होने की बजाय खुद के और देश के बारे में सोचें।
मेरी इच्छा है कि आज के दिन को मैं थर्सडे की बजाय वेडनेसडे कहूं। जिन्होंने अभी तक वेडनेसडे नहीं देखी है उनसे मैं गुजारिश करूंगा कि इस अद्भुत फिल्म को अवश्य देखें। अगर सरकार अभी भी नहीं चेतती है तो 'रील स्टोरी' को 'रियल स्टोरी' में बदलने में देर नहीं लगेगी।
शांति।
लेखक ग्रेनियम इंफार्मेशन टेक्नोलॉजीज़ के सीईओ हैं।