मुन्नाभाई-सर्किट की नोकझोंक
सर्किटः
भाई,
बोले
तो
पहले
तो
सिर्फ
रात
को
ही
मच्छर
काटते
थे,
अब
तो
दिन
में
भी
काटने
लगे
हैं।
मुन्नाभाईः
अबे
सर्किट,
तूने
ये
रिसेशन
के
बारे
में
नहीं
सुना
क्या?
पूरे
वर्ल्ड
में
मंदी
की
मार
ऐसी
है
कि
इंसान
तो
क्या,
अब
मच्छरों
को
भी
दिन-रात
काम
करना
पड़
रहा
है।
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मुन्नाभाईः
अबे
सर्किट,
तेरे
हाथ
पर
पट्टी
कैसे
बंधी
है?
सर्किटः
कुछ
मत
पूछो
भाई,
अपुन
का
मोटर
एक्सीडेंट
हो
गया
था।
मु्न्नाभाईः
अरे
इतनी
चोट
आ
गई?
सर्किटः
नहीं
बॉस,
मुझे
तो
खरोंच
भी
नहीं
लगी
परंतु
उधर
से
एक
गुजर
रहा
था,
उसको
जरूर
लग
गई।
मुन्नाभाईः
अबे
खरोंच
भी
नहीं
लगी
तो
हाथ
पर
पट्टियां
कैसी
हैं?
सर्किटः
क्या
बोलूं
मु्न्नाभाई,
कल
वही
आदमी
अपुन
को
रस्ते
में
दोबारा
मिल
गया।
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मुन्नाभाईः
अबे
सर्किट,
तुझे
मैंने
लिफाफे
पर
चिपकाने
वाले
टिकट
खरीदने
के
लिए
पैसे
दिए
थे,
फिर
पैसे
वापस
कैसे
ले
आया?
सर्किटः
बॉस,
तुम
भी
कहोगे
कि
अपुन
के
पास
क्या
माइंड
है,
कोई
देख
नहीं
रहा
था,
इसलिए
अपुन
बिना
टिकट
लगाए
लिफाफा
लेटर
बॉक्स
में
छोड़
आया।
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