9/11 की बरसी: अमेरिका से पहले बात करते हैं भारत की
[अजय मोहन] ठीक बारह साल पहले आज ही के दिन मैं सुबह छह बजे लखनऊ के कैसरबाग चौराहे पर दूध लेने गया था। दुकान पर लगे टीवी पर न्यूज फ्लैश हो रही थी, "अमेरिका के ट्विन टावर पर आतंकी हमला"। मैं झट से घर आया, टीवी खोला, तो देखा आतंकियों ने पूरी प्लानिंग के साथ पेंटागन के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया। फिर खबर आयी कि चार में से एक हवाई जहाज वॉशिंगटन को तबाह करने से पहले ही क्रैश हो गया। दुनिया के सबसे बड़े आतंकी हमले में 3000 से ज्यादा लोग मारे गये। आज 12वीं बरसी पर पूरा विश्व इस हमले पर चर्चा कर रहा है।
चर्चा में जो सबसे अहम बात है वो यह कि इस हमले के बाद अमेरिका में एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ। यही नहीं इस हमले के साजिशकर्ता ओसामा बिन लादेन को भी अमेरिका ने मार गिराया। अगर इसी तर्ज पर भारत की बात करें, तो अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला 26/11 माना जाता है। इसके अलावा मुंबई धमाके व अन्य हमले भी हैं, जिन्होंने भारत के सीने को छलनी किया है। फर्क इतना है कि एक बड़े हमले के बाद अमेरिकी एजेंसियां इतनी चुस्त हो गईं कि वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन अफसोस भारत की एजेंसियां इतनी सशक्त नहीं हो पायीं।
अधिकांश लोग कहते हैं कि 9/11 के साजिशकर्ता को मार गिराने के लिये एक विल पावर चाहिये थी और वह सिर्फ बराक ओबामा में दिखाई दी और उसी के चलते पाकिस्तान के एब्टाबाद में घुसकर अमेरिकी लड़ाकों ने लादेन को मार गिराया। सिर्फ 9/11 ही नहीं, 26/11 ही को देखें तो कुल 166 लोग मारे गये, जिनमें 4 अमेरिकी नागरिक थे। अमेरिका के लिये उन चार अमेरिकी नागरिकों की मौत इतनी महत्वपूर्ण थी कि एफबीआई ने मुंबई हमले में अहम भूमिका निभाने वाले डेविड हेडली और तहव्वुर राणा को धर दबोचा।
अब अगर भारत की बात करें, तो वर्तमान नेतृत्व में ऐसी क्षमता कतई नहीं दिखाई देती है। निकट भविष्य की बात करें, तो फिलहाल भारत की जनता को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के अंदर वो जुनून दिखाई दे रहा है, जो दाउद इब्राहिम, हाफिज सईद, जैसे भारत के दुश्मनों का सफाया कर सके। हमें पता है कि भारत की विदेश नीतियों के चलते इन्हें पकड़ना आसान नहीं है, लेकिन बड़े प्रयास तो किये ही जा सकते हैं। पिछले महीने हैदराबाद की रैली में नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया था, "येस वी कैन"। यही नारा बराक ओबामा ने चुनाव से पहले दिया था। अमेरिका में चुनाव के दौरान वहां का मीडिया भी तत्कालीन सरकार से एक ही सवाल पूछता था, 3000 मौतों का जिम्मेदार ओबामा कब तक आजाद घूमता रहेगा? तब वहां की सरकार के पास भी कोई जवाब नहीं था। लेकिन ओबामा ने सत्ता में आने के बाद वो कर दिखाया, जो पहले कोई नहीं कर सका।
आज कुछ वैसा ही आलम भारत का है। मीडिया हर दूसरे दिन एक ही सवाल केंद्र सरकार से करता है- दाउद और हाफिज सईद जैसे लोग कब तक आजाद घूमते रहेंगे? हमारी वर्तमान सरकार पहले तो चुप रहती है और फिर जवाब आता है कि अमेरिका की मदद से दाउद को पकड़ने की तैयारी की जा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या लादेन को पकड़ने के लिये अमेरिका ने भारत या किसी अन्य देश की मदद ली थी?
हो सकता है कांग्रेस के समर्थक मेरी इस बात से खफा हों और कहें कि राहुल गांधी में वो आग है। तो उनके लिये सिर्फ एक ही जवाब है- वो आग तब क्यों नहीं दिखाई दी जब मुंबई, हैदराबाद, जयपुर, पुणे में धमाके हुए। आग होती तो वो यह न कहते, "हम आतंकी हमलों को रोकने में कामयाब हुए हैं, पाकिस्तान को देखिये वहां तो रोज धमाके होते हैं।" इस बयान से साफ है कि आपके लिये दस-पंद्रह मौतों का गवाह बनने वाले बम धमाके कोई मायने नहीं रखते। और हां अगर उनके अंदर वाकई में आग है, तो अब तक उन्हें कोई भी मंत्रालय क्यों नहीं सौंपा गया? जिस व्यक्ति के पास एक मंत्रालय तक चलाने का अनुभव नहीं हो, उसे देश की बागडोर कैसे सौंपी जा सकती है।
एक आम भारतीय होने के नाते मैं अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि 9/11 हमलों की बरसी पर अमेरिका में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि जरूर दीजिये, लेकिन एक बार अपने देश इस वर्तमान परिदृश्य पर गौर करना मत भूलिये।