अक्षय तृतीया पर जरूर करें बांके बिहारी के दर्शन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सृष्टि का शुभारम्भ हुआ था तथा भगवान विष्णु के छठे अवतार के रुप में भगवान परशुराम का अवतरण हुआ था। कहा जाता है कि बांके बिहारी मन्दिर में अक्षय तृतीया को बांके बिहारी को रजत पायल पहनाकर उनके चरणों में सृष्टि का प्रतीक चन्दन का गोला रखा जाता है। उस दिन बांके बिहारी मन्दिर तथा बृज के कई मन्दिरों में चरण दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही होते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन बिहारी जी महाराज जहां प्रात: काल चरण दर्शन देते हैं वहीं सायंकाल ठाकुर जी के सर्वांग में चन्दन लेपन करके पीता बर धारण कराया जाता है। सप्त देवालयों एवं राधारमण मन्दिर में उस दिन राजभोग आरती बत्ती की न होकर फूलों की होती है और शरद उत्सव तक यही चलता रहता है। बाल स्वरुप में सेवा होने के कारण ठाकुर जी को गर्मी से बचाने के लिए अक्षय तृतीया के दिन चन्दन में कपूर और केसर मिलाया जाता है और फिर उसे लगाकर उनका श्रृंगार किया जाता है।
अक्षय तृतीया से शरद पूर्णिमा तक ठाकुर जी जगमोहन में विराजते हैं। उस दिन सतुआ के लड्डू और फलों का भोग लगता है। चन्दन लेपन के बाद ठाकुर जी को सत्तू, ककड़ी, खरबूजा, किसमिस, मुनक्के तथा सरबत आदि का भोग लगाया जाता है। राधा बल्लभ मन्दिर में इसी दिन से फूल बंगला बनना शुरु हो जाता है। गोविन्द देव मन्दिर के आचार्य सुमित गोस्वामी ने बताया कि प्राचीन मन्दिर में जहां गिरिराज जी का चन्दन श्रृंगार किया जाता है वहीं नवीन मन्दिर में राधा गोविन्द का चन्दन श्रृंगार होता है।