For Daily Alerts
कविता: वो 'कृषक' तभी कहलाते हैं !
वो 'कृषक' तभी कहलाते हैं !
अपने अतीत को दे बिसार,
वो नित नव कोपलें सजाते हैं!!'
'हर घडी हर पहर में लू व शीतल लहर में !
रुकता नही वो कर्मवीर किसी प्रकृति के भी कहर मे !!'
'डाल
भाग्य
का
दाना
भू
पर,
कुछ
उससे
आस
संजोता
है
!
फिर
रखता
है
उम्मीद
उसी
से,
जो
हंसी-खुशी
से
बोता
है
!!'
'फिर
भी
उस
गरीब
किसान
को-अब
लगती
किसी
की
हाय
है
!
हो
जाती
बरसात
बे-मौसम-न
होता
कोई
सहाय
है
!!'
सूबे
की
सरकार
तुरंत
फिर,
सबको
राहत
देती
है
!
सौ-दो
सौ
की
नकदी
देकर,
उसकी
चाहत
लेती
है
!!
'उस
पर
भी
बैंकर्स
के
-
बन्धे
कमीशन
अपार
हैं
!
मिलते
हैं
छ:
सौ
रुपये-आये
गर
हजार
हैं
!!
क्या
करे
किसान
वह
-बन्द
न्याय
के
दरबार
हैं,
फैला
है
चहुंदिश
अन्धेरा-लटकती
नग्न
ये
तलवार
है
!!'
Comments
English summary
A Toching Poetry on Indian Farmer written by Oneindia Reader and Poet Chetan Nitinraj Khare 'Chitravanshi'.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें