कविता: शिक्षक ही वह देव है ,जिस सम कोई न और...
शिक्षा
शिक्षक
से
मिले
,
शिक्षक
की
ही
पौर
।
शिक्षक
ही
वह
देव
है
,जिस
सम
कोई
न
और॥
आर्यावर्त
यह
देश
है
,सुन
लो
जरा
अतीत
।
चलते
गुरुकुल
थे
यहां,
यही
पुरानी
रीति
॥
सुन
जनती
माता
सभी
,पितु
करता
परितोष
।
गुरू
देवे
सुज्ञान
जब
,
है
मिले
तभी
संतोष
॥
यहीं
अयोध्या
भूमि
है
,
जहं
प्रगटे
थे
श्री
-राम
।
गुरू
विश्वामित्र
के
साथ,सहे
कष्ट
तज
विश्राम॥
राम
लखन
मुनि
साथ
मे,
तब
विद्या
पाई
हाल
।
मुनि
मख
की
रक्षा
करी
,भये
राक्षश
कुल
के
काल॥
यहीं
वह
व्रज
की
भूमि
है
,जहं
जन्मे
थे
व्रजराज
।
व्रज
को
देकर
बाल
सुख
,किये
सुरों
हित
काज
॥
वह
भी
गुरुकुल
में
पढे
,की
गुरू
की
मरजाद
।
विप्र
सुदामा
के
साथ
मे,गुरु
मां
से
ले
परसाद॥
हुये
अर्जुन
से
योद्धा
यहीं
,
जिनके
गुरू
थे
द्रोण
|
लक्ष्य
भेद
सीखा
पार्थ
ने,
व
व्यूह
भेद
हर
कोण
||
महापुरुष
गुरू
कृपा
से
,हुए
जगत
विख्यात
|
प्रताप,परशु
व
भीश्म
का
,नहीं
पौरुष
किसको
ज्ञात
||
शिक्षक
दिवस
शिक्षकों
को,सदा
रहा
प्रेरणाश्रोत
|
शिक्षक
शिष्य
के
मध्य
नहीं,
जाती
धर्म
व
गोत्र
||
शिक्षक
दिवस
में
सब
शिक्षक
,करके
निज
ह्रदय
स्वतंत्र
|
शिष्यों
को
दें
शुभकामनाएं
,
व
निज
उन्नति
के
मंत्र
||