कविता: ऋषि मुनियों की तपोभूमि से ,अब सत्य अहिंसा दूर है
ऋषि
मुनियों
की
तपोभूमि
से
,
अब
सत्य
अहिंसा
दूर
है
|
सच
बातों
को
झुठलाने
में,
कुछ
पेशेवर
मजबूर
हैं
||
सत्य
अहिंसा
की
छाया
भी,
कहीं
नहीं
अब
मिलती
है
|
झूंठ
कपट
की
कुटिल
हंसी
,
अब
हर
चेहरे
में
खिलती
है
||
सत्य
बोलने
वालों
का
है
,
अब
इस
जग
में
निर्वाह
नहीं
|
सत्कर्मों
को
करने
वालों
की
,
यहं
होती
है
अब
चाह
नहीं
||
अब
सदाचार
को
अपनाने
की
,
है
दिखती
कोई
राह
नहीं
|
झूठ
कपट
के
मकडजाल
की
,
है
मिलती
कोइ
थाह
नहीं
||
लेकिन याद कीजिये
अपने
प्रण
का
पालन
करते
,
कुछ
राजा
स्वर्ग
सिधार
गए
|
कुछ
भूपति
तो
सत्य
के
पीछे
,
धन
दौलत
सब
हार
गए
||
पर
सम्पति
की
रक्षा
खातिर
,
है
अपना
जीवन
दान
किया
|
सत्य
प्रेम
के
उपदेशों
का
,
सदा
है
जिनने
गान
किया
||
उस
बुद्ध
व
उन
दधीची
के
,
जीवन
को
कुछ
ध्यान
करो
|
सत्यवादिता
की
मिशाल
उस
,
युधिष्ठिर
का
आह्वान
करो
||
इसीलिये-
सत्य
का
है
जिनने
किया
,
पालन
जीवन
पर्यंत
है
|
तो
आज
भी
उनकी
कथा
,
जीवंत
है
-
जीवंत
है
||
धर्म की जय हो..................