कविता: पूरी दुनिया के नक्शे में ही फिर पाकिस्तान नहीं होगा
हास्य,विरह व करुणा के छन्द नही लिख सकता मै
जब आंखों मे बसीं तस्वीरें उन वीरों के शहादत की
तो-अब भ्रमर बन पुष्पों की सुगन्ध नहीं लिख सकता मै
देश
की
रक्षा
करते
करते
निज
प्राणों
को
भी
वार
दिया
वतन
के
वीर
जवानों
ने
अपना
सर्वस्व
निसार
दिया
मध्य
रात्रि
चोरी
से
छिपकर
दुश्मन
ने
है
वार
किया
तब
घात
लगाकर
हमला
करके
पीछे
से
आ
मार
दिया
एक
मास
मे
पांच
बार
है
संघर्ष
विराम
जो
तोड
रहे
इस
पापी
नापाक
पाक
को
क्यों
अब
भी
हो
छोड
रहे
अरे-आदेश
थमा
दो
सेनाओं
को
अब
भी
क्यों
मुंह
मोड
रहे
अब
क्यों
नही
जरदारी
शरीफ
की
गर्दन
न
जाय
मरोड
रहे
मुठ्ठी
भर
कुत्तों
को
शामिल
करके
शेरों
को
ललकारा
है
किसके
बहकावे
मे
आकर
फिरसे
दिलेरों
को
ललकारा
है
ये
दिल्ली
की
सरकार
अगर
थोडी
सी
हिम्मत
कर
जाये
बस
अबकी
एक
बार
हमला
करने
को
सहमत
कर
जाये
सौगन्ध
शहीद
वीर
जवानों
की
द्रृश्य
बदल
अब
जायेगा
इस्लामाबाद,काश्मीर,करांची
तक
ये
तिरंगा
लहरायेगा
अबकी
युद्ध
हुआ
गर
तो
अब
नरसंहार
बडा
भीषण
होगा
दुनिया
से
पाक
मिटाने
को
यही
हर
सैनिक
का
प्रण
होगा
नापाक
पाक
को
काट
काटकर
वायस
श्रगाल
खिलायेंगे
इन्दुस
सतलज
चेनाब
से
हम
तेरे
लहू
की
धार
बहायेंगे
काटे
थे
शीश
जवानो
के
तो
इसका
हश्र
बडा
दुखदायी
होगा
ये
अपना
वजूद
मिटाने
का
अब
तू
खुद
ही
सौदायी
होगा
वो
दो
वीरों
के
शीश
नही
थे
वो
भारत
मां
की
आन
थी
देश
प्रेम
का
लहू
था
उनमे
सेवा
मे
बसती
जान
थी
अब
उन
दो
शीशों
के
बदले
मे
हम
दो
हजार
उतारेंगे
बाकी
को
शीश
सहित
ही
हम
घर
घर
मे
जाकर
मारेंगे
तेरा
सबकी
आंखों
के
आगे
ही
तब
अंतिम
वो
क्षण
होगा
तेरा
नक्शे
से
नाम
मिटाने
को
ये
बिना
रुके
ही
रण
होगा
उस युद्ध अंत मे यह तय है कि तब शमशान वहीं होगा
पूरी दुनिया के नक्शे मे ही फिर पाकिस्तान नही होगा