Pics : ‘मैं कर्णावती नगरी के लोगों को दर्शन देना चाहता हूँ’
अहमदाबाद। 'वत्स नरसिंह। तेरी और सारंगदास की इच्छा से मैं पुरी से यहाँ तो आ गया, लेकिन पुरी में तो वर्ष में एक बार मैं भक्तों को दर्शन देने परिक्रमा के लिए निकलता हूँ। पुरी की तरह यहाँ भी मैं कर्णावती नगरी के लोगों को दर्शन देना चाहता हूँ।'
अहमदाबाद में ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर से हर वर्ष अषाढ़ी दूज को निकलने वाली रथयात्रा आगामी 10 जुलाई को निकलेगी। यह भगवान जगन्नाथ की 136वीं रथयात्रा होगी। अहमदाबाद में जमालपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर से सन् 1878 से हर वर्ष अषाढ़ी दूज को यह रथयात्रा निकलती है। वास्तव में यह रथयात्रा स्वयं भगवान जगन्नाथ के आदेश की अनुपालना है।
कहते हैं कि ईस्वी सन् 1878 में भगवान जगन्नाथ ने मंदिर के तत्कालीन महंत नरसिंहदास महाराज को स्वप्न में आकर नगर परिक्रमा की इच्छा जताई और वहीं से शुरू हुई रथयात्रा की परम्परा, जो आज भी अक्षुण्ण है। यद्यपि एक बार सरकार की कानून-व्यवस्था की चिंताओं के कारण परम्परा टूटने के कगार पर थी, लेकिन मंदिर प्रशासन की संकल्पबद्धता ने परम्परा को टूटने से बचा लिया।
आइए तसवीरों के साथ जानते हैं अहमदाबाद की रथयात्रा का रोचक इतिहास :
साढ़े चार सौ वर्ष पुराना मंदिर
अहमदाबाद में स्थित जगन्नाथ मंदिर करीब 450 वर्ष पुराना है। कहते हैं कि 450 साल पूर्व साबरमती नदी के तट पर रामानंदी सिद्ध संत हनुमानदास महाराज ने हनुमानजी का मंदिर (वर्तमान जगन्नाथ मंदिर) स्थापित किया था। यह हनुमान मंदिर भगवान जगन्नाथ के पुरी से यहाँ आने के बाद से जगन्नाथ मंदिर के रूप में विख्यात हुआ।
नरसिंहदास रथयात्रा के जनक
हनुमानदास महाराज के शिष्य महंत सारंगदास महाराज को उड़ीसा के पुरी से भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ लाने का श्रेय जाता है, वहीं उनके शिष्य बालमुकुंददास महाराज के शिष्य नरसिंहदास महाराज रथयात्रा के जनक कहलाए।
जगन्नाथ की इच्छा
आज से 136 वर्ष पूर्व एक सुबह महंत नरसिंहदास महाराज ने शिष्यों तथा भक्तों को एकत्र किया और रात में आए स्वप्न को व्यक्त किया। नरसिंहदास महाराज ने कहा कि कल रात भगवान जगन्नाथ उनके स्वप्न में आए और बोले, 'वत्स नरसिंह। तेरी और सारंगदास की इच्छा से मैं पुरी से यहां तो आ गया, लेकिन पुरी में तो वर्ष में एक बार मैं भक्तों को दर्शन देने परिक्रमा के लिए निकलता हूँ। पुरी की तरह यहां भी मैं कर्णावती नगरी के लोगों को दर्शन देना चाहता हूँ।'
भक्तों में छाया हर्षोल्लास
नरसिंहदास महाराज के इस स्वप्न को सुन कर शिष्यों और भक्तों में हर्षोल्लास छा गया और घोषणा कर दी गई कि आगामी अषाढ़ी दूज को कर्णावती नगरी में भी भगवान बड़े भाई और बहन समेत नगर परिक्रमा को निकलेंगे।
सन् 1878 में निकली थी प्रथम रथयात्रा
इस घोषणा के साथ ही जगन्नाथ मंदिर में भगवान की नगर परिक्रमा की तैयारियां शुरू हो गईं। नगर परिक्रमा के लिए सबसे पहली जरूरत थी रथ। इसका जिम्मा उठाया खलासियों ने। खलासियों की माता भगवान जगन्नाथ की परम भक्त थीं। उन्होंने महंत नरसिंहदास महाराज से आग्रह किया कि रथ निर्माण से लेकर रथ खींचने तक की सारी जिम्मेदारी खलासियों को दी जाए। महंत ने उनकी भावना का सम्मान करते हुए यह जिम्मेदारी खलासों को दे दी।
जलयात्रा
हर वर्ष जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा से पंद्रह दिन पूर्व अमावस्या को जलयात्रा निकाली जाती है। जलयात्रा के जरिए साबरमती नदी से जल लाया जाता है, जिससे भगवान का स्नानाभिषेक कराया जाता है।
भगवान मामा के घर
जलयात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा तथा बड़े भाई बलराम के साथ मामा के घर (अहमदाबाद में सरसपुर स्थित रणछोड राय मंदिर) चले जाते हैं, जो अषाढ़ी पूर्णिमा को यानी रथयात्रा के दो दिन पहले निज मंदिर में लौटेंगे और दूज को नगर परिक्रमा को निकलेंगे।