सारे दु:खों को हरने आ रहे हैं गणपति बप्पा
वेद, पुराण, ग्रंथ व उपनिषद् आदि ये सभी धर्म, ज्ञान और परम्परा तक ही सीमित नहीं बल्कि यह परमविज्ञान है। परमविज्ञान हमें संयम सिखाता है और संयम आत्मबोध की यात्रा में एक पात्रता है।
भगवान गणेश की उपासना के लिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी के 10 दिन मनोकामना और दुःखों को दूर करने के लिए अति शुभ है। इस उत्सव का अन्त अनन्त चतुर्दशी के दिन श्री गणेश की मूर्ति को समुद्र में विसर्जित करने के पश्चात होता है।
विनायक चतुर्थी व्रत भगवान श्री गणेश के जन्म उत्सव का दिन है। वह दिन गणेश उत्सव के रूप में पूरे भारत वर्ष में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। वैसे तो इसकी धूम लगभग हर जगह देखने को मिलती है, किन्तु महाराष्ट्र में इसे भव्य रूप में मनाने की परम्परा कर्मयोगी एंव राष्ट्रवादी विचारक बाल गंगाधर तिलक ने डाली थी। भारत में समाज और धर्म का गहरा सम्बन्ध है।
संस्कृति और धर्म के आधार पर किसी भी जनमानस को राष्ट्रवाद के प्रति प्रेरित किया जा सकता है। महाराष्ट्र का यह गणेश उत्सव एक ऐसा धर्म रूपी छाता है, जिसमें अनेक धर्मो के लोग दुःख की बारिश से बचने के लिए शरण लेते है। गणेश जन्मोत्सव सिर्फ एक उत्सव तक ही समीमित नहीं बल्कि यह राष्ट्रवाद का प्रतीक है। साक्षात प्राणरूप गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यान्ह काल में हुआ था। ''एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी माथे सिन्दूर सोहे मूस की सवारी''।
गणेश जी का एक दांत शक्ति का प्रतीक है। चार भुजायें यानि चारों दिशाओं में प्रभाव। माथे पर लगे सिन्दूर से लोक कल्याण की उर्जा प्रवाहित हो रही है और गणेश जी का वाहन मूषक है,जो किसानों का मित्र है। गणेश जी का बड़ा पेट सम्पन्नता का प्रतीक है। हिन्दू संस्कृति में भगवान गणेश स्वंय सर्व विघ्न विनाशक है, इसलिए हिन्दू धर्म के किसी भी यज्ञ में गणेश की प्रथम प्रार्थना करने की प्रथा प्रचलित है। NEXT- कैसे करें गणेश चतुर्थी पर गणपति का पूजन।